तेज़ आंधी है, सायबान है क्या
मेरे हक़ में कोई बयान है क्या
क्यों, ये लहजे में आग है कैसी
पाँव के नीचे आसमान है क्या
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
हर तलब को शिकस्त दी मैं ने
यह हक़ीकत नहीं गुमान है क्या
मुफलिसी खा गयी जवानी को
इससे अच्छा कोई बयान है क्या
तुझको यह भी नहीं हुआ मालूम
तेरे मुंह में भी इक ज़बान है क्या
जख्म छूने से ये हुआ महसूस
तेरे होंटों में ज़ाफ़रान है क्या
जंगलीपन नहीं गया अब तक
मेरा भारत बहुत महान है क्या !!
मेरे हक़ में कोई बयान है क्या
क्यों, ये लहजे में आग है कैसी
पाँव के नीचे आसमान है क्या
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
हर तलब को शिकस्त दी मैं ने
यह हक़ीकत नहीं गुमान है क्या
मुफलिसी खा गयी जवानी को
इससे अच्छा कोई बयान है क्या
तुझको यह भी नहीं हुआ मालूम
तेरे मुंह में भी इक ज़बान है क्या
जख्म छूने से ये हुआ महसूस
तेरे होंटों में ज़ाफ़रान है क्या
जंगलीपन नहीं गया अब तक
मेरा भारत बहुत महान है क्या !!