तेज़ आंधी है, सायबान है क्या
मेरे हक़ में कोई बयान है क्या
क्यों, ये लहजे में आग है कैसी
पाँव के नीचे आसमान है क्या
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
हर तलब को शिकस्त दी मैं ने
यह हक़ीकत नहीं गुमान है क्या
मुफलिसी खा गयी जवानी को
इससे अच्छा कोई बयान है क्या
तुझको यह भी नहीं हुआ मालूम
तेरे मुंह में भी इक ज़बान है क्या
जख्म छूने से ये हुआ महसूस
तेरे होंटों में ज़ाफ़रान है क्या
जंगलीपन नहीं गया अब तक
मेरा भारत बहुत महान है क्या !!
मेरे हक़ में कोई बयान है क्या
क्यों, ये लहजे में आग है कैसी
पाँव के नीचे आसमान है क्या
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
हर तलब को शिकस्त दी मैं ने
यह हक़ीकत नहीं गुमान है क्या
मुफलिसी खा गयी जवानी को
इससे अच्छा कोई बयान है क्या
तुझको यह भी नहीं हुआ मालूम
तेरे मुंह में भी इक ज़बान है क्या
जख्म छूने से ये हुआ महसूस
तेरे होंटों में ज़ाफ़रान है क्या
जंगलीपन नहीं गया अब तक
मेरा भारत बहुत महान है क्या !!
13 टिप्पणियां:
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
बहुत सुन्दर ! ब्लॉग पर आने के लिए और सुझाव के लिए शुक्रिया ...
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या...
वाह...
किस खूबसूरती से शेर कहा है...
तुझको यह भी नहीं हुआ मालूम
तेरे मुंह में भी इक ज़बान है क्या...
बहुत अच्छी शायरी है जनाब...
इंशा अल्लाह आना जाना लगा रहेगा.
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
क्या बात है!
सुबहान अल्लाह!
शायद ये औसाफ़ ऐसे ही ख़ानदानों में बचे हुए हैं
लेकिन मुआफ़ी के साथ कहना चाहती हूं कि मैं आप के आख़री शेर से मुत्तफ़िक़ नहीं हूं
मेरे विचार से मेरा भारत महान था महान है और महान रहेगा इंशा अल्लाह
वाह वाह...सुबहानअल्लाह, किस सादगी से, इतनी मुख्तसर सी बहर मे आपने इतनी मआनीखेज़ अशआर पैदा किए है. मुरीद हो जाने को दिल करता है.
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
जंगलीपन नहीं गया अब तक
मेरा भारत बहुत महान है क्या !!
वाह बहुत खूब। पहली बार देखा आपका ब्लाग यहाँ तो खजाना भरा पडा है। बधाई आपको।
क्या बात है ! बहुत खूबसूरत गज़ल !
हर शेर दमदार !
इस में इज़्ज़त भी है, शराफ़त भी
यह गरीबों का ख़ानदान है क्या
जंगलीपन नहीं गया अब तक
मेरा भारत बहुत महान है क्या
बहुत ही उम्दा और पाएदार अशार कहे हैं जनाब
वाह !!
आज आपके ब्लॉग पर आकार बहुत अच्छा लगा...आपकी शायरी बेहतरीन है...और ये गज़ल तो सुभान अल्लाह...कमाल की है...दाद कबूल करें...
नीरज
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
Vaah ... kamaal kre sher kahe hain janaab ... kis kis par daad dun ...
"जबान है क्या....सुन्दर, बहुत सुन्दर......धन्यवाद
संजय जी
मतले से जो सफ़र शुरू हुआ वो मकते ता जारी है.......बहुत उम्दा ग़ज़ल
हर शेर उम्दा
ये तीन शेर तो क्या कहने......
जिस्म अपना मैं छोड़ दूं लेकिन
सोचता हूँ कोई मकान है क्या
और
हर तलब को शिकस्त दी मैं ने
यह हक़ीकत नहीं गुमान है क्या
इसके अलावा ये भी
जख्म छूने से ये हुआ महसूस
तेरे होंटों में ज़ाफ़रान है क्या
khubsurat gazal hai
http://shayaridays.blogspot.com
behad khoobsuart lajawab ghazal .aapki shayri ne hamesha hi mujhe . buhat mutassir kiya hain.kya khoob surat ghazal se nawaza hai padh kar besaakhta hi wah nikal jaati hai ash'aar par daad
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